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दिल्ली दंगे का दर्द आज भी ताजा है!

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दिल्ली दंगे का दर्द आज भी ताजा है!

नई दिल्ली। एक तरफ जब दिल्ली दुनिया के सबसे ताकतवर नेता- अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की खातिरदारी में जुटी थी, वहीं दूसरी तरफ असामाजिक और साम्प्रदायिक तत्व दिल्ली में आगजनी कर रहे थे, क़त्लेआम मचा रहे थे, लूटपाट और प्रत्येक तरह के हिंसात्मक-घृणास्पद कार्यों को अंजाम देने में जुटे थे। उत्तरी पूर्वी दिल्ली के इस साम्प्रदायिक दंगे में लगभग 54 लोगों की जान चली गईं, सैंकड़ों घायल हुए और करोड़ों रुपये की संपत्ति में आग लगा दी गयी और कईओं को ध्वस्त कर दिया गया था। पुलिस वालों पर भी लाठी और पत्थर से हमले किये किये गए जिसमे एक हेड कांस्टेबल की मौत भी हो गयी थी व कई गंभीर रूप से घायल हुए थे। आज से ठीक एक वर्ष पहले यानी कि 23, 24 फरवरी 2020 को दिल्ली ने वह देखा जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की जा सकती। उस दौरान सीएए और एनआरसी को लेकर जगह-जगह पर धरना प्रदर्शन किए जा रहे थे। सच है कि उन धरनों से आवागमन बाधित हो रही थी और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा था। शाहीन बाग़ उन दिनों काफी चर्चा में था। राजनीतिक सामाजिक मुद्दों पर विरोध समझ में आता है लेकिन इसकी आड़ में देश की राजधानी दिल्ली को जलाने की साजिश रच दी जाएगी, ऐसा शायद ही किसी ने कल्पना भी किया होगा।
उत्तरी पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा, यमुनाविहार, शिव विहार, उस्मानपुर, गोकुलपुरी, जाफराबाद, चांदबाग, खजूरी खास, करावल नगर, वेलकम, सीलमपुर आदि क्षेत्रों में हिंसा और आगजनी का आलम ऐसा था कि अपने घरों के अंदर भी लोग असुरक्षित महसूस कर रहे थे। गालियां तबाह हो चुकी थीं, सबके मन में डर और दहशत व्याप्त था। स्थानीय लोगों के अनुसार 23 तारीख की रात को ही साम्प्रदायिक हिंसा की शुरुआत की जा चुकी थी जो कि 24 फरवरी की शाम 4 बजे तक यमुना विहार और वजीराबाद रोड पर प्रत्यक्ष रूप से सामने आ गया था। दंगाईयों के हाथों में पत्थर, लोहे के रॉड, डंडे, पिस्तौल आदि साफ तौर पर देखे जा रहे थे। इसके कई वीडिओज़, फोटोज काफी वायरल भी हुए हैं। और तो और अगले दिन ही पुष्ट खबर आ गयी थी कि आम आदमी पार्टी के नेता और निगम पार्षद ताहिर हुसैन के घर पर पेट्रोल बम, एसिड की बोतलें, नुकीले तार के डंडे, गुलेल आदि की व्यवस्था पहले से की जा चुकी थी। यही मकान दंगा का केंद्र बिंदु बना हुआ था। आलम यह था कि जो सामने आ रहा था, उसपर चाकू, तलवार, पत्थर या फिर डंडों से वार किया जा रहा था और संपत्तियों में आग लगा दी जा रही थी। सैंकड़ों की संख्या में कारें जला दी गईं, होटल, रेस्टुरेंट, कोचिंग सेंटर, पेट्रोल पंप, दुकानें आदि में आगजनी कर लूटपाट भी की गई। स्थानीय निवासी बताते हैं कि घनी आबादी वाले इन क्षेत्रों में गरीबी और पिछड़ापन जरूर था लेकिन साम्प्रदायिक विद्वेष नहीं था। हिन्दू मुस्लिम के बीच नफरत की भावना नही थी। सब मिलजुल कर रहते थे, लेकिन दंगे वाली रात उनके लिए अब तक की सबसे काली रात बन कर आई। कईओं ने अपने बेटे, पति, बच्चे खोये। अंकित शर्मा जैसे कई नाम हैं जिन्हें बेहद घृणात्मक ढंग से मार दिया गया। इससे आपसी सौहार्द खराब हुआ है जिसे आसानी से पाटा नही जा सकता। यह भी सच है कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के निर्दोष लोग दंगाईयों के निशाने बने। दहशत के कारण कई दिनों तक दुकानें बंद रहीं, लोग अपने घरों में दुबके हुए थे। कई दिनों तक लोग आसपास के इलाकों तक निकलने से डर रहे थे।
कुलमिलाकर यह दंगा दिल वाली दिल्ली पर एक बड़ा कलंक लगा गया। पुलिस इन्वेस्टीगेशन के बाद लगभग 1800 लोग गिरफ्तार किए गए जिसमे 1165 अभी भी जेल में हैं। इस मामले में कुल 755 केस दर्ज किए गए जिसमे लगभग 400 केसों में सुनवाई चल ही रही है। 62 केसों की सुनवाई एसआईटी द्वारा की जा रही है। इसके अलावा सैकड़ों अन्य लोगों को भी नामजद कर दंगा में उनकी भूमिका देखी जा रही है। कोरोना महामारी के वावजूद दिल्ली पुलिस की जांच सघन रही। हालांकि दंगों के दौरान पुलिस की अनुपस्थिति पर भी स्थानीय लोगों ने अपनी नाराजगी जताई थी। दिल्ली पुलिस की खुफिया सेल को इस घटना की भनक नही लग पाई तभी इस तर्ज पर दंगा संभव हो पाया।
बहरहाल, ऐसी घटना कभी न घटे, दिल्ली या देश का कोई भी कोना कभी न जले इसके लिए दिल्ली पुलिस और गृहमंत्रालय को ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए कि दंगाइयों में दुबारा ऐसी घटना को अंजाम देने का दुःसाहस न हो सके।

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