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एन्टी इनकंबेंसी के बाबजूद नीतीश पहली पसंद, दूसरा कोई विकल्प नहीं

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एन्टी इनकंबेंसी के बाबजूद नीतीश पहली पसंद, दूसरा कोई विकल्प नहीं

आर. पी. संवाददाता, पटना.
बिहार चुनाव के पहले चरण का मतदान कल यानी 28 अक्टूबर को होना है और इसी दिन 243 में से 71 विधानसभाओं के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद हो जाएगा। गत दिनों के जोरदार प्रचार में दोनों ही प्रमुख गठबन्धनों ने अपनी पूरी ताकत से प्रचार कर जनता से अपने पक्ष में वोट की अपील की। इस दौरान दोनों ही गठबन्धनों की सभाओं में भीड़ उमड़ी। एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के संतुक्त चेहरे पर वोट मांगी जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ लालू जी के पुत्र तेजस्वी यादव के नेतृत्व में कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन द्वारा सरकार बदलने की मांग सभाओं के मुख्य विषय रहे।
हाल के दिनों में चर्चा ऐसी भी हुई कि तेजस्वी यादव की सभा मे अपार भीड़ जुट रही है जबकि एनडीए की सभा में भीड़ नही जुट रही है। ऐसा कहना तर्कसंगत नही लगता क्योंकि भीड़ दोनों ही गठबंधनों की सभाओं में उमर रही है। दोनों ही गठबंधनों का अपना एक कैडर वोट है और वह भीड़ का हिस्सा बन रही है। भाजपा और जेडीयू का अपना एक कैडर है तो वही आरजेडी समेत कांग्रेस व वाम दलों का अपना। सभाई भीड़ से इतर यदि हम जनता के मिजाज को भांपने की कोशिश करें तो भीड़ विशेष से भी चौकाने वाली बात सामने आती है। तेजस्वी यादव की कई सभाओं से निकलते वक्त भीड़ के कुछ लोगों का ऐसा भी कहना था कि तेजस्वी को सुनने आये थे, लेकिन वोट तो नीतीश को ही देंगे। इससे इतर कुछ लोगों के बीच चर्चाएं ऐसी भी थीं कि नीतीश कुमार से मन तो भर गया है लेकिन तेजस्वी को कैसे वोट दे देंगे? मतलब थोड़ी नाराजगी के वाबजूद नीतीश कुमार ही उनके लिए एकमात्र विकल्प हैं। इसका कारण जानने की कोशिश करने पर बहुतों ने कहा कि ‘काम त नीतीश कुमार ही किये हैं। आरजेडी आ जाएगा तो फिर से अराजकता फैला देगा।’
ऐसे वक्तव्यों से एक तथ्य तो स्पष्ट है कि तेजस्वी आज भी अपने पिता के साशन काल की खामियों का नतीजा भुगत रहे हैं। उनके चुनावी वायदे रंग लाते नही दिख रहे। जहां तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सवाल है, 15 सालों के साशन के बाद एक स्वाभाविक विरोध झेल रहे हैं लेकिन अब भी पलड़ा उन्ही का भारी दिख रहा है। वह अपने कामकाज को ही जनता के बीच रख रहे हैं और आगे के विकास पर जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे है।
खैर इस बार का चुनाव अन्य वर्षों से ज्यादा दिलचस्प है। 28, 3 और 7 तारीख की वोटिंग के बाद 10 को स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार की कुर्सी किसकी होगी? लेकिन चुनाव से पूर्व यानी आज की स्थिति देखी जाए तो इसमें दो राय नही की बिहार में एक बार फिर से नीतीश कुमार की ही सरकार बनती दिख रही है।

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