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4442 मामलों में वर्तमान और पूर्व सांसद-विधायक मुकदमों का सामना कर रहे हैं

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4442 मामलों में वर्तमान और पूर्व सांसद-विधायक मुकदमों का सामना कर रहे हैं

उच्चतम न्यायालय को सभी उच्च न्यायालयों से मिली जानकारी के अनुसार देश में नेताओं के खिलाफ 4,442 आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं और इनमें से 2,556 ऐसे मामलों में वर्तमान सांसदों तथा विधायकों के खिलाफ मुकदमे लंबित हैं। संसद और विधान सभाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के तेजी से निबटारे के लिये दायर याचिकाओं पर न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को ऐसे लंबित मामलों का विवरण पेश करने का निर्देश दिया था। इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने सभी उच्च न्यायालयों से मिले विवरणको संकलित करके अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘सभी उच्च न्यायालयों द्वारा दी गयी रिपोर्ट से पता चलता है कि कुल 4,442 ऐसे मामले लंबित हैं, इनमें से 2,556 मामलों में वर्तमान सांसद-विधायक आरोपी हैं। इनमें से 352 मामलों की सुनवाई उच्चतर अदालतों के स्थगन आदेश की वजह से रूकी है।’’ न्यायालय में पेश 25 पेज के हलफनामे में कहा गया है कि इन 2,556 में निर्वाचित प्रतिनिधि आरोपी हैं। इन मामलों में संलिप्त प्रतिनिधियों की संख्या मामलों से ज्यादा है क्योंकि एक मामले में एक से ज्यादा ऐसे निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हैं जबकि यही प्रतिनिधि एक से अधिक मामलों में आरोपी है। भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर न्यायालय द्वारा दिये गये आदेश पर यह रिपोर्ट दाखिल की गयी। हंसारिया ने अपने हलफनामे में राज्यों के अनुसार भी मामलों की सूची पेश की है जिनमें उच्चतरअदालतों के स्थगन आदेशों की वजह से मुकदमों की सुनवाई रूक गयी है। रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय ने 352 मामलों की सुनवाई पर रोक लगायी है। 413 मामले ऐसे अपराधों से संबंधित हैं जिनमें उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। इनमें से 174 मामलों में पीठासीन निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हैं।

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रिपोर्ट के अनुसार इस चार्ट में सबसे ऊपर उप्र है जहां विधि निर्माताओं के खिलाफ 1,217 मामले लंबित हैं और इनमें से 446 ऐसे मामलों में वर्तमान विधि निर्माता शामिल हैं। इसी तरह,बिहार में 531 मामलों मे से 256 मामलों में वर्तमान विधि निर्माता आरोपी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनेक मामले भ्रष्टाचार निरोधक कानून, धनशोधन रोकथाम कानून, शस्त्र कानून, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से रोकथाम कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दर्ज हैं। न्याय मित्र ने इन नेताओं से संबंधित मुकदमों के तेजी से निबटारे के लिये न्यायालय को कई सुझाव भी दिये हैं। इनमें सांसदों और विधायकों के मामलों के लिये प्रत्येक जिले में विशेष अदालत गठित करने का सुझाव शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च न्यायालयों को ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी करनी चाहिए। हलफनामे में सुझाव दिया गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय को राज्य में लंबित ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी और शीर्ष अदालत के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये ‘सांसद/विधायकों के लिये विशेष अदालत नाम से अपने यहां ‘स्वत:’ मामला दर्ज करना चाहिए। इसमें कहा गया है, ‘‘प्रत्येक उच्च न्यायालय पूर्वऔर वर्तमान विधि निर्माताओं से संबंधित मुकदमों की संख्या और मामले की प्रवृत्ति को देखते हुये उन्हें सुनवाई के लिये आवश्यकतानुसार सत्र अदालतों और मजिस्ट्रेट की अदालतों को नामित कर सकते हैं। उच्च न्यायालय आदेश के चार सप्ताह के भीतर इस तरह का फैसला ले सकते हैं।’’ रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि विशेष अदालतों को उन मुकदमों को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें अपराध के लिये दण्ड मौत की सजा या उम्र कैद है। इसके बाद सात साल की कैद की सजा के अपराधों को लेना चाहिए। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वर्तमान विधि निर्माताओं से संबंधित मामलों को पूर्व विधि निर्माताओं के मामलों में प्राथमिकता दी जाये और विशेष अदालत में चल रहे मुकदमों के मामलों में फारेंसिक प्रयोगशालाओं को अपनी रिपोर्ट तैयार करने में प्राथमिकता देनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने वर्तमान उन सांसदों और विधायकों के संबंध में आदेश दिया था जिनके खिलाफ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (1)(2) और धारा 8(3)के तहत अभियोग निर्धारित किये जा चुके हैं। न्यायालय ने इन माननीयों के मुकदमों की सुनवाई तेजी से करनेऔर यथासंभव अभियोग निर्धारित करने की तारीख से एक साल के भीतर इसे पूरा करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने ऐसे मामलों की सुनवाई रोजाना करने का निर्देश दिया था और कहा था कि अपरिहार्य कारणों से अगर अदालत एक साल के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी नहीं कर पाती है तो उसे इस बारे में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को अपनी रिपोर्ट देनी होगी। ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संबंधित अदालत को मुकदमे की सुनवाई पूरी करने की अवधि के बारे में उचित आदेश दे सकते हैं।

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